Asrani’s death

Asrani’s death

गोवर्धन असरानी (Asrani) , जिन्हें दुनिया असरानी के नाम से जानती है, हिन्दी सिनेमा के महान हास्य अभिनेता और निर्देशक थे। उन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक 350 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और हर किरदार को अपनी विशेष अदायगी से यादगार बनाया। असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर शहर में एक सिंधी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका निधन 20 अक्टूबर 2025 को 84 वर्ष की आयु में हुआ ।​

Asrani
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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

असरानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयपुर के सेंट ज़ेवियर स्कूल से पूरी की और फिर राजस्थान कॉलेज, जयपुर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनके पिता की जयपुर में एक कालीन की दुकान थी और वे चाहते थे कि असरानी पारिवारिक व्यवसाय संभालें, लेकिन किशोर असरानी का मन हमेशा अभिनय और मिमिक्री में लगता था ।​

कॉलेज के दिनों में वे ऑल इंडिया रेडियो के जयपुर स्टेशन पर वॉइस आर्टिस्ट के रूप में जुड़ गए। इसी समय उन्होंने थिएटर की तरफ रुख किया और अभिनय का जुनून बढ़ता गया। अभिनय में करियर बनाने के लिए उन्होंने 1964 से 1966 तक फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से एक्टिंग की ट्रेनिंग ली ।​​

फिल्मी करियर की शुरुआत

1967 में असरानी को उनकी पहली फिल्म “हरे कांच की चूड़ियां” मिली। 1971 में रिलीज हुई फिल्म “बावर्ची” में ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें ऐसा अवसर दिया जिसने असरानी के करियर की दिशा बदल दी। इसके बाद उन्होंने लगातार हास्य भूमिकाओं से दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना ली ।​​

प्रसिद्ध भूमिकाएँ और लोकप्रियता

असरानी की सबसे लोकप्रिय भूमिका 1975 की सुपरहिट फिल्म “शोले” में जेलर की थी, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश जमाने के अफसर की नकल करते हुए यादगार प्रदर्शन किया। उनका संवाद और अभिनय आज भी दर्शकों को हँसा देता है।
1970 से 1990 के दशक में असरानी ने राजेश खन्नाअमिताभ बच्चनधर्मेंद्र, और किशोर कुमार जैसे कलाकारों के साथ शानदार काम किया।

उनकी अन्य प्रसिद्ध फिल्मों में शामिल हैं:

  • बावर्ची (1972)

  • आप की कसम (1974)

  • चुपके चुपके (1975)

  • अमर अकबर एंथनी (1977)

  • चमेली की शादी (1986)

  • खट्टा मीठा (2010)​

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निर्देशन और योगदान

असरानी सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि निर्देशक भी थे। उन्होंने 1980 में फिल्म “चला मुरारी हीरो बनने” निर्देशित की जिसमें वे खुद मुख्य भूमिका में थे।
वर्ष 1988 से 1993 तक वे एफटीआईआई पुणे के निदेशक भी रहे। यह वही संस्था है जिसमें वे पहले बैच के छात्र रह चुके थे ।​

पुरस्कार और सम्मान

असरानी को उनके हास्य प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार मिले।

  • 1986 में फिल्म “सात कैदी” के लिए उन्हें बेस्ट कॉमेडियन अवॉर्ड मिला।

  • उन्हें गुजरात राज्य सरकार की ओर से बेस्ट एक्टर और बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड प्रदान किया गया ।​

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व्यक्तिगत जीवन

असरानी की पत्नी का नाम मंजू बंसल असरानी था, जो खुद भी एक अभिनेत्री थीं। दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया। इनका एक पुत्र है जो फिल्म जगत से दूर है। अपने मधुर स्वभाव और विनम्रता के कारण असरानी को इंडस्ट्री में बेहद सम्मानित स्थान प्राप्त था ।​

असरानी की मृत्यु

लंबी उम्र और अभिनय से भरे जीवन के बाद असरानी का निधन 20 अक्टूबर 2025 को मुंबई में हुआ। उनके निधन से फिल्म जगत में गहरा शोक छा गया। फिल्म “शोले” के उनके डायलॉग और हास्यपूर्ण शैली आज भी अमर हैं। सोशल मीडिया भर में लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और “कॉमेडी किंग असरानी” के रूप में याद किया ।​​

असरानी की विरासत

असरानी भारतीय सिनेमा के उन दुर्लभ कलाकारों में से थे जिन्होंने कॉमेडी को सम्मान और क्लास दी। उनकी कॉमेडी कभी फूहड़ नहीं बल्कि दिल छूने वाली होती थी। उन्होंने एक पूरी पीढ़ी के कॉमेडियन्स के लिए रास्ता खोला और प्रेरणा स्रोत बने।
आज भी नए कलाकार उनके अभिनय टाइमिंग और संवाद शैली को अपना आदर्श मानते हैं ।​​

 

निष्कर्ष

असरानी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि मेहनत, लगन और जुनून से कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। उन्होंने यह साबित किया कि कॉमेडी सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि कला का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उनकी कला, किरदार और मुस्कान हमेशा दर्शकों के दिलों में जिंदा रहेंगे — सचमुच, असरानी जी हमेशा याद किए जाएंगे

 

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